नई दिल्ली। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने वंदे मातरम को लेकर अपनी राय दी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी मुसलमान को अपनी धार्मिक आस्था के खिलाफ कोई नारा या गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
मौलाना अरशद मदनी का कहना
अरशद मदनी ने कहा कि वंदे मातरम के श्लोकों में देश को देवी दुर्गा के रूप में पूजा जाने की बात कही गई है। वे स्पष्ट करते हैं कि मुसलमान केवल अल्लाह की इबादत करता है और किसी अन्य देवता या पूजा में शामिल नहीं हो सकता। मदनी ने कहा:
“वतन से प्यार करना अलग है, पूजा करना अलग है। किसी को अपनी आस्था के खिलाफ नारा या गीत गाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।”
मौलाना ने यह भी कहा कि वंदे मातरम को गाने या पढ़ने में आपत्ति नहीं है, लेकिन जबरदस्ती करना सही नहीं है।
संसद में चर्चा और ओवैसी की प्रतिक्रिया
वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को लोकसभा में इस विषय पर चर्चा शुरू की। राज्यसभा में भी इसके विस्तार में चर्चा हो सकती है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा:
“भारत में आजादी इसलिए मिली क्योंकि मुल्क और मजहब को एक नहीं बनाया गया। अगर कोई जबरदस्ती करेगा तो यह संविधान के खिलाफ है। देशभक्ति दिखानी है तो गरीबी खत्म करें। मुसलमान केवल अल्लाह की इबादत करता है और किसी को मजबूर नहीं किया जा सकता।”
ओवैसी ने यह भी कहा कि जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा नहीं लिया, वे आज वतन से मोहब्बत की बातें कर रहे हैं, और वंदे मातरम को वफादारी का टेस्ट बनाने की कोशिश सही नहीं है।